इंडिया हैबिटेट सेंटर में स्क्रिप्ट राइटिंग का वर्कशॉप चल रहा था। वर्कशॉप का वह आखिरी दिन था और बच्चों को स्क्रिप्ट राइटिंग का गुर सिखाने के लिए उस दिन जावेद अख्तर साहब आनेवाले थे। स्क्रिप्ट राइटिंग की दुनिया में जावेद साहब का नाम बड़े ही अदबके साथ लिया जाता है। बच्चों के साथ-साथ मैं भी जावेद साहब से मिलने के लिए उतावला हो रहा था। हमलोग उनका शिद्दत के साथ इंतजार कर रहे थे। इंतजार की घड़ियां काटे नहीं कट रही थीं। आखिरकार इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं और जावेद साहब वर्कशॉप हॉल में दाखिल हुए। बच्चों ने जैसे ही उन्हें देखा, अपनी जगह पर खुशी से उछल पड़े। जावेद साहब ने आते ही बच्चों का अभिवादन किया और बच्चों को स्क्रिप्ट राइटिंग का फंडा सिखाने लगे|
उन्होंने बच्चों को स्क्रिप्ट राइटिंग के बहुत सारे टिप्स दिए और उनसे कई सवाल भी किए। बच्चों ने भी सवालों का बहुत ही विश्वास के साथ जवाब दिया। जावेद साहब उससे खुश भी दिखे। बच्चों के साथ जावेद साहब ने अपने संघर्ष के दिनों को भी याद किया और बताया कि कैसे उन्होंने कामयाबी हासिल की। लगभग 2 घंटे तक चला यह वर्कशॉप जब खत्म हुआ तो वह मीडिया से मुखातिब हो्ने के लिए आगे बढ़े।
चूंकि जावेद साहब एक बड़ी हस्ती हैं, इसलिए मीडियाकर्मियों का वहां पर अच्छा खासा हुजूम था। वह जैसे ही आगे बढ़े, प्रिंट मीडिया के पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। पर जावेद साहब ने सभी प्रिंट मीडिया के पत्रकारों को कहा कि आप लोग रुक जाइए, पहले टीवी वालों से बात कर लेने दीजिए। यह कहकर जावेद साहब टीवी वालों से बात करने के लिए आगे बढ़ गए। यह देखकर मैं भक रह गया। भक तो सभी प्रिंट के पत्रकार भी थे। जिस जावेद साहब से मिलने के लिए मैं इतनी देर से बेकरार था और जिनके बारे में इतना कुछ सुन सका था, वह ऐसा करेंगे, मैंने सोचा नहीं था। इसके पहले मैं कई बड़ी हस्तियों से मिल चुका था, पर किसी ने ऐसी बात नहीं कही थी। जावेद साहब के इस बर्ताव के बाद मुझे वह कहावत याद आने लगी-हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और...।
6 comments:
excellent matter
दरअसल वस्तुस्थिति यह है कि फिल्म मीडिया में जितने लोग हैं वास्तव में वैसे नहीं हैं जैसा महिमामंडन न्यूज मीडिया ने उनका किया है। ज्यादातर लोगों की तरह कला और कलाप्रेमियों के सरोकारों के लिए समर्पित लोग 'सब' नहीं हैं। न्यूज मीडिया में बनी छवि के चश्मे से जब उन्हें देखा जाता है तो ऐसे अनुभव होते हैं। वे लोग भी आम हैं। अपने को लोकप्रिय देखने को आतुर हैं। सो वे ऐसा व्यवहार कर जाते हैं। लेकिन, न्यूज मीडिया को उन्हें परोसने से राजस्व मिलता है। सो उन्हें परोसने के लिए हम लोग आतुर रहते हैं। Don't worry... उन्हें उनके हाल पर छोड़ो...:)
ऐसा भी होता है..आपसे जाना!! हम समझते थे कि साझा मिलते हैं सबसे.
ये सब प्रायोजित महानता है। प्रोपेगैण्डा और विज्ञापनबाजी कमाल की चीजें हैं!!!
काहे नाहक परेशान होते हैं? अगर वो प्रिंट वालों से पहले बात कर लेते तो टी वी वाले दिन भर खबर रगड़कर उनकी मट्टी पलीद नहीं कर देते क्या!?
आप पत्रकार लोग खुद को भगवान समझना बंद कब करोगे?
Hathi ke dant khane ke aur dikhane ke aur------------ is se yah pata chalta hai ki yah kahawat ekdum sach hai.paper walo aur TV walo me yah antar hai ki wo flash jyada karte hai,paper parh kar jan ne ki bajay tv jyada lokpriya hai,JAVED JI bhi paper se jyada importance isiliye tv walo ko diye. samay ka demand mere khyal se yahi hai.
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