Sunday 25 October, 2009

मैं किसी कीमत पर हिंदी नहीं बोलूंगी...

बात फरवरी 2006 की है। इंडिया हैबिटेट सेंटर में एक पेंटिंग प्रदर्शनी का उद्घाटन होनेवाला था। चूंकि चित्रकार कोई खास नामी नहीं थीं, इसलिए उन्होंने शायद सोचा होगा क्यों न किसी फिल्मी हस्ती से ही इसका उद्घाटन कराया जाए। उन्होंने प्रदर्शनी का उद्घाटन कराने के लिए बॉलिवुड अदाकारा शर्मिला टैगोर को बुलाया था। मीडियाकर्मियों को जो आमंत्रण भेजे गए थे, उस पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा गया था कि इस प्रदर्शनी का उद्घाटन शर्मिला टैगोर करेंगी। चूंकि हम सेलिब्रिटी जर्नलिजम के दौर में जी रहे हैं, यही वजह थी कि उस दिन वहां पर कई चैनलवालों समेत बहुत सारे मीडियाकर्मी इस इवेंट को कवर करने पहुंचे। जागरण की तरफ से मैं भी वहां पहुंचा था। सारे मीडियाकर्मी शर्मिला टैगोर का इंतजार कर रहे थे। कुछ इंतजार के बाद शर्मिला टैगौर वहां पहुंचीं और उन्होंने उस पेटिंग प्रदर्शनी का उद्घाटन किया और प्रदर्शनी के बारे में अपने विचार को अंग्रेजी में रखा।

वहां बहुत सारे हिंदी चैनलवाले भी पहुंचे थे। वे भी सवाल पूछने लगे। संवाददाता हिंदी में सवाल कर रहे थे, पर शर्मिला टैगौर जवाब अंग्रेजी में दे रही थीं। इसी बीच एक संवाददाता ने कहा, मैडम जवाब हिंदी में दीजिए, क्योंकि हमारे दर्शक हिंदी को बखूबी समझते हैं। इस पर शर्मिला ने साफ कहा, मैं यहां पर हिंदी का सिंगल वर्ड भी नहीं बोलूंगी। मैं सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी में बाइट्स दूंगी। आपको बाइट्स लेनी है तो लीजिए या जाइए, मैं तो सिर्फ अंग्रेजी ही बोलूंगी। इसी बीच एक टीवी चैनल की संवाददाता जो अब तक प्रदर्शनी की पेटिंग्स को कवर करने में लगी थी, वह दौड़ते-दौड़ते आई और बोली, मैडम बजट आनेवाला है, उसके बारे में अपनी राय दीजिए। इस पर शर्मिला ने अंग्रेजी में बोलना शुरू किया, संवाददाता ने उन्हें तुरंत टोका और कहा मैडम मेरा चैनल हिंदी में है और आप हिंदी में बाइट्स दीजिए। इस पर शर्मिला ने वही जवाब दिया, जो वह कुछ देर पहले दे चुकी थीं। शर्मिला का यह जवाब सुनकर हिंदी के सारे संवाददाता निराश हो गए।

मुझे भी शर्मिला टैगोर का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा। अगर शर्मिला जी को हिंदी बोलने में दिक्कत होती, तो शायद हमें इस बात पर कोई तकलीफ नहीं होती। पर शर्मिला टैगोर आज जो भी हैं, वह बॉलिवुड फिल्मों की वजह से ही हैं और मेरी जहां तक जानकारी है, उन्होंने बॉलिवुड में जितनी भी फिल्में की हैं, वे सारी फिल्में हिंदी भाषा में बनी हैं। मुझे जहां तक पता है शर्मिला टैगोर की हिंदी इतनी ठीक जरूर है कि वह खुद के विचारों को इस भाषा में व्यक्त कर सकें। हां, कुछ लोग यह जरूर सवाल उठा सकते हैं कि शर्मिला टैगोर किसी भी भाषा में बोलने के लिए आजाद हैं और अगर वह अंग्रेजी में बोलती हैं तो इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पर दोस्तो, अगर उनसे निवेदन किया जाए और इसके बाद भी वह हिंदी में नहीं बोलें, यह तो कहीं से भी सही नहीं है न। अगर वह हॉलिवुड की हीरोइन रहतीं तो शायद इससे किसी को भी ऐतराज नहीं होता, पर वह तो हिंदी फिल्मों की हीरोइन हैं न। आज वह जिस मुकाम पर हैं, वह सिर्फ और सिर्फ हिंदी फिल्मों की वजह से।

शर्मिला जी ने उस दिन जो थप्पड़ हिंदी रिपोर्टर्स के मुंह पर मारा था, ऐसा लगता है कि उसके निशान आज भी मेरे गाल पर हैं । जब भी मैं अपना चेहरा आईना में देखता हूं, तो वह निशान मुझे न चाहते हुए भी दिख जाते हैं।