उस दिन मैं सो रहा था, तभी मेरा मोबाइल बज उठा। फोन मेरे दोस्त विवेकानंद का था। देखते ही मैंने फोन उठाया, उधर से आवाज आई कि आपने टीवी देखा। मैंने कहा, नहीं। विवेकानंद ने कहा, टीवी ऑन कीजिए, देखिए कैसा तमाशा चल रहा है। मैंने चौंक कर पूछा क्या हुआ यार, बताओ तो। उसने कहा, आप खुद ही देख लीजिए। मैंने टीवी ऑन किया। देखा ब्रेकिंग चल रही थी। महाराष्ट्र विधानसभा में एमएनएस की गुंडागर्दी। विधायक राम कदम ने अबू आजमी को थप्पड़ मारा। हिंदी में शपथ लेने पर एमएनएस ने किया हंगामा। मैंने देखते ही कहा, यह तो होना ही था।
दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा में 9 नवंबर को जो कुछ हुआ उसकी भूमिका आज से दो साल पहले ही तैयार हो गई थी। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और समाजवादी पार्टी के बीच अपने-अपने वोट बैंक को रिझाने का यह योजनाबद्ध कार्यक्रम करीब दो साल पहले 24 जनवरी को उत्तर प्रदेश दिवस मनाने से शुरू हुआ था। तब समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अबू आजमी ने उत्तर भारतीयों का पक्ष लेते हुए राज ठाकरे को चुनौती दी थी और हिंदी भाषी लोगों में सुरक्षा के लिए डंडे बंटवाये थे।
उसके कुछ ही दिन बाद आजमी ने तीसरे मोर्चे की रैली में एमएनएस के विरुद्ध जहर उगल कर उत्तर भारतीयों को एक बार फिर रिझाया था, तो उसी रैली में हिंदी भाषी लोगों पर हमला बोलकर एमएनएस कार्यकर्ताओं ने मराठी मानुस के दिल में जगह बनाने का प्रयास किया, जो अब तक जारी है। इस विवाद के चलते दोनों पार्टियों के पक्ष में वोटों का जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ। इस राजनीतिक ध्रुवीकरण का फायदा विधानसभा चुनावों में दोनों दलों को मिला। एमएनएस 13 सीटें जीतने में कामयाब रही तो समाजवादी पार्टी को 14 साल बाद 4 सीटें मिलीं।
भले ही पहली नज़र में हिंदी में शपथ लेने पर आजमी को थप्पड़ भाषायी राजनीति का हिस्सा लगता हो, पर परदे के पीछे का खेल वास्तव में सत्ता संघर्ष का है। मजे की बात यह है कि मराठी भाषा के नाम पर सदन में मारपीट करनेवाले एमएनएस के 13 विधायकों में से 8 के बच्चे मराठी मीडियम के स्कूल में नहीं बल्कि अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में पढ़ते हैं। यह है महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का मराठी प्रेम। मराठी से इनका वोट बैंक मजबूत होता है और अंग्रेजी से इनके बच्चों का भविष्य। इसी तरह हिंदी प्रेम के लिए थप्पड़ खानेवाले अबू आजमी के एक रिश्तेदार विधायक ने 1996 में यूपी विधानसभा में हिंदी में शपथ लेने से इनकार कर दिया था। उसने विधान सभा के सामने उर्दू में शपथ लेने के लिए धरना भी दिया। बाद में मुलायम सिंह के हस्तक्षेप के बाद उसने हिंदी में शपथ ली। तब अबू आजमी साहब कहां थे? तब उनका हिंदी प्रेम कहां था?
और आखिर में बात हिंदी की। असम हो या मणिपुर या महाराष्ट्र हिंदी बोलने वाला हर जगह प्रताड़ित है। ना जाने ऐसा क्यों है कि हिंदी बोलने वाला ही दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में भटकता है। अब तो ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान में हिंदी बोलना ही गुनाह है।